Sunday 22 December 2013

कहते हैं कि भूल जाओ हमें , हम मिल ना पाएंगे

कहते हैं कि भूल जाओ हमें , हम मिल ना पाएंगे,
हमारे प्यार के फूल कभी खिल ना पाएंगे,
समझ ले वो भी कि राह-ए-वफ़ा के राही हैं हम,
मर जायेंगे पर किसी और से दिल ना लगाएंगे ।

----© Niraj Shrivastava

Wednesday 18 December 2013

कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना

कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

मोरे मन को बैरी कोयलिया समझ ना पाये,
क्यों बिरहा की अगन में ये कूक सुनाये, 
बादरिया भी आके मोहे कितना तड़पाये,
कौन सा जतन करूँ कुछ समझ ना आये ।

अब आ भी जा ओ पिया! सुन मेरा कहना, 
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

पगली बनाये मोहे, बरखा कि बूँदें,
देखूं अब छब तुम्हरी मैं , नैनों को मूंदें । 
तुम्हरे ही रंग में पिया! मैं तो रंगी हूँ,
अपने ही अंदर में ये मैं तो नहीं हूँ । 

पीर ये मन की बहुत, कठिन है सहना,
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

----© Niraj Shrivastava

Wednesday 4 December 2013

उन बदनाम गलियों में, दुकानदारी आज भी है

उन बदनाम गलियों में, दुकानदारी आज भी है,
अरमानों को रौंदने की,  खरीदारी आज भी है ।

शब्-ओ-रोज़ किश्तों में  मरने पर भी,
उनकी नज़रों में, रवादारी आज भी है। 

रूह घायल होता है चंद रुपयों कि खातिर,
उसमें भी कितनों की, हिस्सेदारी आज भी है ।

मासूमियत को कुचल कर जलाने कि वहाँ,
दौलत वालों की, ज़िम्मेदारी आज भी है ।

आज़ाद मुल्क में क़ैद परिंदों कि तरह,
पल पल उन पर, पहरेदारी आज भी है ।

------- © Niraj Shrivastava

Friday 1 November 2013

आओ दीपावली मनाएं

खुशियों  के यूँ दीप जलाएं ,
धरती अम्बर तक जगमगायें ,
मन के सारे द्वेष  मिटायें,
आओ दीपावली मनाएं ।

मीठी बोली हरदम बोलें ,
ह्रदय  के सारे द्वार को खोलें ,
अंधियारे को दूर भगाएं ,
आओ दीपावली मनाएं ।

समाज को जागृत करें,
संस्कारों में अमृत भरें,
अपने सब कर्त्तव्य निभाएं ,
आओ दीपावली मनाएं ।

-----Niraj Shrivastava

Saturday 5 October 2013

मुहब्बत का यही बस दस्तूर होता है

मुहब्बत का यही बस दस्तूर होता है,
अक्सर पहली नज़र का ही क़सूर होता है।

नज़रों से जब अहसास बात करते हैं, दोस्तों!
तब अनकही अल्फाज़ों का एक अलग ही सुरूर होता है।

मदहोशी  का समां हर वक़्त रहता रहता है ऐसे,
जैसे बिन पिए ही शक्स नशे में  चूर होता है।

सवाल-ए -वस्ल पर उनके चेहरे के ये शिकन,
कहते हैं,  ज़माने को मुहब्बत नहीं मंज़ूर होता है।

हर हाल में जो मुहब्बत की बाज़ी जीत लेते हैं,
किस्सा उनके प्यार का दोस्तों! बहुत मशहूर होता है।

----© NIRAJ SHRIVASTAVA

Saturday 28 September 2013

क़रीब आ के वो इतना, क्यों दूर हो गए

क़रीब  आ के वो इतना, क्यों दूर  हो गए,
ज़माने वालों की खातिर क्यों, मजबूर हो गए।

मेरे मौला ! बता दे मेरा क़सूर क्या था,
मेरे दिल के ज़ख्म इतने क्यों, नासूर हो गये। 

जो कभी दिल में यूँ रहते थे रहनुमा बनकर,
वो किसी और की आँखों के क्यूँ, नूर हो गये।

उनकी नज़रें तो अब मुझे पहचानती भी नहीं,
सोचता हूँ कि वो इतने क्यूँ,  मग़रूर हो गये। 

राह-ए-मुहब्बत के राही तो हम दोनों थे मगर,
मैं बना मुज़रिम तो वो क्यूँ, बेक़सूर हो गये। 
--- © Niraj Shrivastava

Wednesday 18 September 2013

अजनबी शहर के ये रास्ते, जाने पहचाने से लगते हैं

अजनबी शहर के ये रास्ते, जाने पहचाने से लगते हैं,
इन गलियों, इन चौराहों से रिश्ते पुराने से लगते हैं ।

उनके क़दम ज़रूर गुज़रे होंगे इन रास्तों से कभी,
तभी यहाँ के मौसम इतने सुहाने से लगते हैं ।

हर जुबां पर यहाँ उनका इख्तियार है इस क़दर,
जैसे हर एक लब्ज़ एक तराने से लगते हैं ।

बस एक दीद को तरस रही हैं क़ायनात सारी,
अब तो हर एक लम्हा एक ज़माने से लगते हैं। 

ये हवाएं, ये फिजायें महक रहे हैं ऐसे,
जैसे बस अभी यहाँ, वो आने से लगते हैं ।

नजाने कितनों के क़त्ल का इल्ज़ाम है उन पर,
हर इल्ज़ाम बस उनके मुस्कुराने से लगते हैं ।

------Niraj Shrivastava

Monday 16 September 2013

दिल की बात दिल में छुपाना, खूब आता है उन्हें

दिल  की बात दिल में छुपाना, खूब आता है उन्हें,
दर्द हमें देकर खुद मुस्कुराना, खूब आता है उन्हें,
वो जानते है कि बेइम्तिहा मुहब्बत है हमको उनसे,
फिर भी अपनी नज़रों को चुराना, खूब आता है उन्हे।  

-----Niraj Shrivastava

Wednesday 11 September 2013

रात, चाँद और सितारे आ गए

रात, चाँद  और सितारे आ गए,
देखो सब किस्मत के मारे आ गये।

सज गयी है महफ़िल अब हमारी भी,
तन्हाइयों के साथी जो हमारे आ गये।

रौशनी की लहर है यहाँ कुछ इस तरह,
जैसे अहसास-ए-मुहब्बत के नज़ारे आ गये।

जलते बुझते सितारे कह रहे हैं मुझसे ,
मौसम कहाँ से इतने प्यारे आ गये।

दिल के समंदर ने तो सब छुपा के रखा था,
नाजाने सारे जज़्बात कैसे किनारे आ गये।

-------Niraj Shrivastava

Sunday 1 September 2013

क्या बात है कि वो आज आये हैं हमारे घर

क्या बात है कि वो आज आये हैं  हमारे घर,
जिन्होंने अक्सर यूँ ही जलाये हैं हमारे घर,
जब  भी  आकर तोडा उसने दिल के आशियाने को,
हौसलों ने हर बार आकर बनाए हैं हमारे घर। 

-----Niraj Shrivastava

Thursday 8 August 2013

तेरे दिल के ज़र्रे ज़र्रे में हूँ

तेरे दिल के ज़र्रे ज़र्रे में हूँ, बस लबों पे इनकार है,
हम जानते हैं बखूबी कि , तुमको भी हमसे प्यार है।

हर बार इनकार के बाद, वो तबस्सुम का आना तेरा,
बस बयाँ  करते हैं कि , हाँ! तुमको भी इकरार है।

इन हवाओं की सोहबत ने, मेरा अक्स भी  बदल  डाला,
क्या कहूँ अब दिल पे मेरे, नहीं  मेरा इख्तियार है।

बस तेरी आरज़ू है दिल में, और कुछ ख्वाहिश नहीं,
हर सितम सहने को अब तो, दिल मेरा तैयार है।

रहनुमा बन जाओ मेरे, सुन लो अपने दिल की बात,
बस चलो अब साथ मेरे, गर मुझपे ऐतबार है। 

-----Niraj Shrivastava

Friday 26 July 2013

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ |

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ, 
रोज़ काम करने खाली पेट आता हूँ,
एक रुपये में भी भर सकता है मेरा पेट,
रोज़ ऐसी ख्वाहिश मैं लपेट लाता हूँ।

मैं हूँ गरीब, हौसला नहीं तोड़ता,
ज़िन्दगी की मुश्किलों से मुह नहीं मोड़ता,
देश के राजनेता कहते हैं यूँ आजकल,
अट्ठाईस रुपये कमाने वाला गरीब नहीं होता।

बच्चे को खिलाऊं या देखूं माँ की हालत,
मौन पड़ी है हमारे देश की अदालत,
चुनाव के समय हमसे होते हैं कई वादे,
बाद में होती है लूट-पाट की वकालत।

फिर भी ये ज़िन्दगी जिये जा रहा हूँ,
घूँट मैं मुश्किलों के पिये जा रहा हूँ,
कोई तो आएगा जो समझेगा दर्द हमारा,
रोज़ दिलासा दिल को यही दिए जा रहा हूँ।

------Niraj Shrivastava

Saturday 13 July 2013

कई मायूस रातों का हिसाब अभी बाकी है

कई मायूस रातों का हिसाब अभी बाकी है,
कई बातों के खुलने का किताब अभी  बाकी है।

जिनके आने से अक्सर महकते थे ये शज़र,
उनके इंतज़ार में आनेवाला सैलाब अभी बाकी है।

सवालों के दायरे से वो कभी गुज़रे हीं नहीं,
उन्हें क्या पता, कितने जवाब अभी बाकी हैं।

सेहराओं को भी हर बार समंदर जो कर दे,
उनके नज़रों से पीनेवाली शराब अभी बाकी है।

आज मुक़द्दर में मेरी ज़िन्दगी अता कर मेरे मौला,
स्याह रातों में आनेवाला माहताब अभी बाकी है।

----------Niraj Shrivastava

Saturday 6 July 2013

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है,
कोई बता दे ये किस रास्ते से गुज़रती है।

जब भी दीद हुई तो सोचता हूँ कि वो,
आँखों से नाजाने दिल में क्यूँ उतरती है।

बहक जाते हैं क़दम उसके  सामने हरदम,
सोचता हूँ, ऐसा होना भी भला कुदरती है।

लब्जों की तो अब कोई अहमियत ही नहीं,
इस जहां से परे उसकी खूबसूरती है।

अरमानो के आईने बयान करते हैं मुझे,
दिल की धडकनें भला क्यों नहीं सुधरती हैं।

-------Niraj Shrivastava

Monday 10 June 2013

उनको रखते हैं हम महफूज़ दिल की बस्ती में

उनको रखते हैं हम महफूज़ दिल की बस्ती में,
बस प्यार के पतवार हैं हमारी कश्ती में।

कई तूफ़ान आये मुझसे टकराने यूँ ही,
दिखा दिया उन्हें औकात हमारी हस्ती ने।

सेहरा में दूर तक सफ़र कर के हमने,
रेत का हिसाब कर दिया यूँ ही मस्ती में।

ज़िन्दगी की दौड़ में कभी सोया ही नहीं,
अब तो सपने भी आते हैं ज़बरदस्ती में।

समंदर की लहरें भी अब बेखौंफ़ घूमती हैं,
उन्हें मालुम है वो हैं हमारी सरपरस्ती में

--------Niraj Shrivastava

Tuesday 28 May 2013

सन्नाटा क्यों है आज इस मैखाने में

सन्नाटा क्यों है आज इस मैखाने में,
डाल दो शराब मेरे पैमाने में।

शाम का माहौल बनाओ तो दोस्तों,
अभी बहुत देर है उनको आने में।

गलियों की खाक में मिल गए हैं कई आशिक,
मोहब्बत कहाँ मिलती है अब इस ज़माने में।

कोई कल कह रहा था मुझसे आकर,
क़फ़न भिजवाया है उसने नजराने में।

देखकर मेरा जनाज़ा कहीं रो ना दे वो,
मेरे दोस्तों! ज़रा जल्दी करना मुझे दफनाने में।

-----Niraj Shrivastava

Tuesday 7 May 2013

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी


जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।
याद आता है वो अल्हड़पन, वो कंचे,
जहां बिताया था बचपन हमने कभी।।

वो बस्ते भरे किताबों से,
वो पन्ने भरे हिसाबों से,
रहतीं थीं सदा जहां खुशियाँ,
खिलते थे सदा मुस्कानों से।
मासूम दोस्त जब साथ थे सभी,
सोचता हूँ कितने अमीर थे तभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

वो गलियाँ वो चबूतरे,
वो छत पर बैठे कबूतरें,
वो चाँद दिखा जब रातों में,
खो जाते हम माँ की बातों में।
जब कहानियां वो सुनाती थी,
लोरियां गाकर सुलाती थी,
काश मिल जाते वो लम्हे मुझे अभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

कितने कमाए पैसे हमने,
पर रिश्ते गंवाएं ऐसे हमने।
जैसे कुछ हाथ से छूट गया,
और कांच के जैसे टूट गया।
आज बिके हुए हैं सारे जज़्बात,
और व्यापारियों जैसे हैं हालात।
आज नहीं कुछ भी वो बात,
नहीं उन रिश्तों के सौगात।
कामयाबी क्या है, और क्या है मंजिल,
जिसे पाने में अकेला रह गया दिल।
आंसुओं में लिपटे हैं तस्वीर उन यादों के सभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

-----Niraj Shrivastava

Tuesday 23 April 2013

अंदाज़ तेरा, हुस्न तेरा और तेरी ये आरज़ू


अंदाज़ तेरा, हुस्न तेरा और तेरी ये आरज़ू,
क्या बयां करती निगाहें, क्या मैं अब तुझसे कहूँ।

प्यार के नाज़ुक जज़्बात और ये दिल के हालात,
लबों पे आते नहीं, तू बोल अब मैं क्या करूँ।

सब समझते हो फिर भी, पास क्यों आते नहीं,
प्यास वस्ल की रह ही जाती, क्यों भला प्यासा रहूँ।

आये हो जब पास मेरे, रात रही है गुज़र,
सुबह के आने का दर्द है, क्यों भला मैं ये सहूँ।

ए खुदा! आवाज़ देकर रात को तू रोक ले,
क़ैद कर इस लम्हे को ज़हन-ओ-दिल के हवाले कर तो दूँ।

-------Niraj Shrivastava

Tuesday 16 April 2013

अपने अलफ़ाज़ को सीने से लगा रखा है


अपने अलफ़ाज़ को सीने से लगा रखा है,
पाकीज़गी के रिश्ते को बचा रखा है।
लोग कहते हैं बिखर जाओगे तूफानों से,
कई तूफ़ान को दिल में ही दबा रखा है।।

कई रातों से इन आँखों को जगा रखा है,
उनकी यादों को शिद्दत से सजा रखा है।
कोई तो आएगा बन के मेरे ग़म का साथी,
इसीलिए दूसरा जाम भी बना रखा है।।

बड़े नज़दीक से दर्द का जो समां चखा है,
अभी तक स्वाद जुबां पर वो बना रखा है।
उजालों की अब तो आदत ही नहीं है मुझको,
अंधेरों से अब एक रिश्ता जो बना रखा है।।

------Niraj Shrivastava

Monday 1 April 2013

ख़ुमार-ए-इश्क के अहसास से चली आओ


ख़ुमार-ए-इश्क के अहसास से चली आओ,
मेरे दिल को भी सनम साथ ले चली आओ।
तुम्हारी यादों के मंज़र में घिर गया हूँ मैं,
मिटा के अब तुम ये फ़ासले चली आओ।।

घर अपना तो इरादों का बड़ा सच्चा है,
अरमां दिल का न मेरे पास सनम कच्चा है।
घर से निकलो कभी संवर के तुम मेरी ख़ातिर,
पायल छनकाती हुई पास तुम चली आओ।।

तुम्हारी फितरतों के हम भी सनम क़ायल हैं,
तुम्हारे नैनों की शरारतों से घायल हैं।
तुम्हारे बिन तो अब मैं जानेमन अधूरा हूँ,
कर दो पूरा मुझे तुम बस अभी चली आओ।।

--------Niraj Shrivastava

Tuesday 26 March 2013

जग तो जीत लिया पर कैसे मन की होए जीत


जग तो जीत लिया पर कैसे मन की होए जीत,
दिल भी जीत सकूँ मैं ऐसा कौन सा गाऊं गीत,
कौन सा जतन करू की जिससे कोई दुखी न होए,
समझ नहीं आता कुछ तो मैं हो जाता भयभीत।

धर्म पर हो रही लड़ाई कैसी जग की रीत,
प्रेम के धुन सुनूँ कैसे और कैसा हो संगीत,
शान्ति का कोई मार्ग ढूंढकर कहाँ से लेकर आऊं,
कैसे मन को स्वच्छ करूँ, भूलूं दुःख भरे अतीत।

कैसे मैं इंसान बनूँ और कैसे बनूँ पुनीत,
कैसा मैं बदलाव करूँ की सब बन जाएँ मीत,
तू ही राह दिखा प्रभु! सुन ले मेरी व्यथा करुण,
ऐसा कुछ करूँ जग में बस सत्य की होए जीत।

-------Niraj Shrivastava

Thursday 14 March 2013

दिल के इन दरख्तों पर, नाम बस तुम्हारा है


दिल के इन दरख्तों पर, नाम बस तुम्हारा है,
दर्द के समंदर पर, हक़ तो बस हमारा है।

क्या दुआ मैं मांगू अब, देखकर आसमां की तरफ,
जो खुद हो रहा है फ़ना, टूटा हुआ सितारा है।

तुम जो हमसे मिलते थे, बस यही तो कहते थे,
दिल जो ये तुम्हारा है, आशियाँ अब हमारा है।

शब्-ओ-रोज़ सोचता हूँ मैं, क्या है मिल्कियत मेरी,
हिजरतों की आंधी में, यादों का जो सहारा है।

-----Niraj Shrivastava

Saturday 9 March 2013

"चाय की चुस्की"


सुबह सुबह सूरज की किरणें,
आतीं हैं जब पंख फैलाए,
परवाज़ हथेली पर रखकर,
जब हम नींद से जग जाएँ,
उठते ही आदत है जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

जिंदगी के हलचल  में,
हर जगह और हर पल में,
दौड़ते दौड़ते अक्सर जब,
थक जाते आते जाते ही,
सब कुछ भूल जाते  हैं,
जिसे होठों  से लगाते ही,
ज़रुरत है सबको जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

साथ जब मनमीत हो,
बज रहा कोई संगीत हो,
बैठें हों जब पास में,
रिश्तों के अहसास में,
अक्सर मिठास लेकर आये,
अक्सर ही खुशबू महकाए,
क्या कहूँ क्या बात है उसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

हो रही बरसात हो,
दोस्तों की जमात हो,
पुरानी जब कोई बात हो,
हँसने की सौगात हो,
बात जब उसकी चल जाए,
चेहरे पर मुस्कान जगाये,
कर रहा हूँ बात जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

-------Niraj Shrivastava

Monday 4 March 2013

तेरी आँखों की इनायत और करम लिख दूंगा


तेरी आँखों की इनायत और करम लिख दूंगा,
तेरी सूरत को मैं दुनिया का भरम लिख दूंगा।

आते हो दिल के दरवाज़े पे जो दस्तक देकर,
अपने दिल को भी मैं अल्लाह का करम लिख दूंगा।

ऐसे देखो न तुम शरमा के अब यूँ मेरी तरफ,
तेरी मुस्कान को मैं ज़ख्मों का मरहम लिख दूंगा।

तेरे अंदाज़-ए-हुस्न को बयां करते हैं जो लोग,
उनके लब्जों को तो मैं बस एक वहम लिख दूंगा।।

------Niraj Shrivastava

Thursday 28 February 2013

अपने ही घर बन के मेहमान जिया करते हैं


अपने ही घर बन के मेहमान जिया करते हैं,
जानेमन खुद पे हम एहसान किया करते हैं।

तेरे दीदार से पायी है मैंने ऐसी कशिश,
अब तो हम दिल को गुलिस्तान किया करते हैं।

मयक़दों में भी अब तो बुझती नहीं प्यास मेरी,
तेरी नज़रों से अब जो जाम पीया करते हैं।

डर तो लगता नहीं अब आग में जल जाने से,
चराग-ए-इश्क में जलकर हम जिया करते हैं।

------Niraj Shrivastava

Monday 25 February 2013

हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |


जा रहा हूँ दूर तुझसे,  पर देश का क़र्ज़ चुकाता हूँ.
तुझसे मिलने को आखिरी बार, तिरंगे में लिपटा आता हूँ..
रोना मत तुम दुआ ये करना, लाल मेरा फिर से आये..
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

मिटटी की यह खुशबू माँ, मैं साथ अपने ले जाऊँगा.
पर तेरे हाथों की रोटी, खाने को ललचाऊंगा..
मर कर भी पास रहूँगा तेरे, क़सम यही मैं खाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

प्यार के फूल चढ़ा देना, मैं साथ उसे ले जाऊँगा.
चूमना मेरे माथे को, फिर चार कन्धों पे जाऊँगा..
मैं तो हूँ बस देश की खातिर, रस्म यही निभाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

---- © Niraj Shrivastava

Sunday 17 February 2013

आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है


बीते लम्हों की कशिश बस अब याद आती है.
ज़हन में तेरी तस्वीर यूँ ही  बन जाती है..
पर क्या करूँ अब इनसे दिल बहलता ही नहीं...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

रहनुमा अब कौन है, ये समझ आता नहीं.
मुस्तक़बिल अब क्या होगा कोई बतलाता नहीं..
शंमा की ये लौ भी अब चेहरा तेरा दिखाती है...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

वस्ल का वो दिन सनम, नाजाने फिर कब आएगा.
हिज्र कि इस शब् में अब ये चाँद भी तड़पायेगा..
ये फ़िज़ायें, ये हवाएं, तेरी आवाज़ मुझे सुनाती हैं...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

--------NIRAJ SHRIVASTAVA

Tuesday 12 February 2013

उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद


उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद.
यादों ने फिर घेर लिया, कई दिनों के बाद..
वक़्त ने दिखाई हमें बीते वक़्त की रफ़्तार...
लम्हे भी जवां हो गए कई दिनों के बाद....

थी कहीं कोई बात या था दुआओं का असर.
खुदा से तो नहीं बाकी, रह गया था कोई क़सर..
क्या बताऊँ आज हमारे कैसे थे हालात....
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

दूरियां जैसे सिमट गयीं, यादों के पन्ने खुल गए.
बीते पलों के अहसास, नज़रों में जैसे घुल गए..
बयां कर सकता नहीं लम्हों की वो सौगात...
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

देखते रहे एक दूजे को, वक़्त जैसे रुक गया.
दो दिलों के सामने आज, आसमां भी झुक गया..
आँखों से बस हो रही थी अश्कों की बरसात...
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

-----------NIRAJ SHRIVASTAVA

Sunday 27 January 2013

दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं


दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं,
कहने को दूर हैं, फिर भी बहुत करीब हैं।
पहली बार मिले हैं दोनों, पर इन्हें मालुम है,
अजनबी कोई नहीं,एक दूजे के ये रक़ीब हैं।।

कितनी सदियाँ बीत गयीं हैं, तुम्हारे इंतज़ार में,
मिल गयीं हैं जन्नतें अब, तुम्हारे ही प्यार में।
ऐसे अहसास से बंधे हैं दोनों, कितने खुशनसीब हैं,
दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं।।

धडकनें ठहर जातीं जब सामने ये आते हैं,
लब्ज़ दे  जाते हैं धोखा, कुछ नहीं कह पाते हैं।
सोचते हैं मन ही मन अब, ये मेरे हबीब हैं,
दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं।।

--------Niraj Shrivastava

Thursday 24 January 2013

कुछ और है !!


अक्सर मुश्किलात होती है राह-ए-मुहब्बत में,
पर उस पर चलने का मज़ा कुछ और है।
लोग कहते हैं की सिवाय दर्द के कुछ भी नहीं यहाँ,
पर इस दर्द को सहने का मज़ा कुछ और है।।

दौलत, शोहरत ना हो तो इस प्यार में दोस्तों,
असलियत जान लोगे की उनकी रज़ा कुछ और है।
दर्द-ए-समंदर भी आ जाए तो कुछ ग़म नहीं,
पर मुहब्बत में जो मिले, वो सज़ा कुछ और है।।

बड़ी शिद्दत से किया था मुहब्बत हमने भी कभी,
पर बेवफाइयों से जो मिला वो क़ज़ा (१) कुछ और है।
वो ज़माना और था जब हीर रांझा हुआ करते थे,
आज तो मुहब्बत निभाने की अदा कुछ और है।।

(१) क़ज़ा-(To fall under the shadow of death )

-------NIRAJ SHRIVASTAVA

Friday 18 January 2013

दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!


उनसे नज़रें मिलाकर आया हूँ दोस्तों!
एक अजनबी एहसास साथ लाया हूँ दोस्तों!
उनको देखा तो बस देखता ही रह गया,
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

नयी सी क्यों लगती है आज सारी कायनात,
कल तक तो वही दिन था और थी वही रात,
नींद आती नहीं अब खुद को जगाया हूँ दोस्तों!
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

कैसे बयाँ करूँ मैं उनसे दिल के जज़बातों को,
कैसे जवाब दूंगा मैं उनके सवालातों को,
उनकी यादों में दुनिया को भुलाया हूँ दोस्तों!
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

---Niraj Shrivastava

Tuesday 8 January 2013

कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं


कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं,
इस भीड़ में अब कहाँ इंसान खो गए हैं।
खुश होते हैं एक दूजे का लहू बहाकर,
धर्म के नाम पर सब हैवान हो गए हैं।।

ईश्वर और अल्लाह को अलग समझते हैं,
धर्म को बेचते हैं ये, गलत समझते हैं।
ईमान तो दिखता नहीं, बेइमान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं।।

अमन का पैग़ाम है, गीता और क़ुरान में,
कोई भी अंतर नहीं है कलमा और पुराण में।
इंसानियत को मार कर, शैतान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं।।

हथियार नहीं पहचानते, हिन्दू मुसलमान,
मरता कोई धर्म नहीं, मरता है इंसान।
बहुत ज्यादा , शमशान और कब्रिस्तान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं,।।

-----Niraj Shrivastava

Wednesday 2 January 2013

मीरा की पुकार--"मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा."


मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा..
पगली बन के घूमूं वन वन, अब तो आजा..
तेरे ही रंग में देख रंग गयी हूँ मैं,
तेरी हीं अब राह निहारूं, अब तो आजा...

हे गिरिधारी! हे गोपाल! दर्शन देदे आज तू.
दया कर अब इस पगली पर, सुन ले मेरी पुकार तू..
आरती गाये तेरी जोगन, अब तो आजा...
मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा....

तेरी एक झलक को प्यासी हूँ हे मधुसुदन!
तुझ से ही बस जुड़ गया है मन का बंधन.
तरस खा मुझ पर हे भगवन, अब तो आजा..
मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा.

----Niraj Shrivastava

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