Saturday 15 February 2014

बड़ी संजीदगी से रिश्तों को निभाते हैं हम

बड़ी संजीदगी से रिश्तों को निभाते हैं हम,
ऐसे ही एहतराम-ए-वफ़ा जताते हैं हम ।

इख़लास ने ख़ुद आकर कहा ये मुझसे,
मक़बरे तक को ताज महल बनाते हैं हम ।

ज़राहत-ए-दिल का मरहम पाने को यारों,
आस्तान-ए-यार पर अक्सर ही जाते हैं हम ।

उनकी नज़रों से जाम पीते पीते हर पल,
ज़िन्दगी को यूँ  पुरकशिश बनाते हैं हम ।

अब क्या कहूं मैं अहद-ए-वफ़ा कि तासीर,
बस यार के सजदे में झुक जाते हैं हम ।

-------- © Niraj Shrivastava

इखलास :- मुहब्बत
ज़राहत-ए-दिल :- दिल का घाव
आस्तान-ए-यार:- यार की चौखट
पुरकशिश:- खूबसूरत
तासीर:- प्रभाव