कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।
मोरे मन को बैरी कोयलिया समझ ना पाये,
क्यों बिरहा की अगन में ये कूक सुनाये,
बादरिया भी आके मोहे कितना तड़पाये,
कौन सा जतन करूँ कुछ समझ ना आये ।
अब आ भी जा ओ पिया! सुन मेरा कहना,
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।
पगली बनाये मोहे, बरखा कि बूँदें,
देखूं अब छब तुम्हरी मैं , नैनों को मूंदें ।
तुम्हरे ही रंग में पिया! मैं तो रंगी हूँ,
अपने ही अंदर में ये मैं तो नहीं हूँ ।
पीर ये मन की बहुत, कठिन है सहना,
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।
----© Niraj Shrivastava