अनजाने रास्तों पे यूँ हीं निकल जाता हूँ,
रेत हूँ मैं, हाँथों से फिसल जाता हूँ।
परिंदा हूँ मैं, सरहदों का मोहताज़ नहीं,
जहां दिल करे, वहाँ परवाज़ लगाता हूँ।
दरिया हूँ मैं, पर्वतों से डरता नहीं,
ठोकर लगते हैं, फिर भी रास्ते बनाता हूँ।
मोहब्बत हूँ मैं, महसूस तो करो मुझे,
दिलों के दरमियाँ, खुशबू सा महक जाता हूँ।
ख़ुशी हो या ग़म, हर जगह हूँ मैं,
पहचान लो मुझे, आँखों से बरस जाता हूँ।
------© NIRAJ SHRIVASTAVA
रेत हूँ मैं, हाँथों से फिसल जाता हूँ।
परिंदा हूँ मैं, सरहदों का मोहताज़ नहीं,
जहां दिल करे, वहाँ परवाज़ लगाता हूँ।
दरिया हूँ मैं, पर्वतों से डरता नहीं,
ठोकर लगते हैं, फिर भी रास्ते बनाता हूँ।
मोहब्बत हूँ मैं, महसूस तो करो मुझे,
दिलों के दरमियाँ, खुशबू सा महक जाता हूँ।
ख़ुशी हो या ग़म, हर जगह हूँ मैं,
पहचान लो मुझे, आँखों से बरस जाता हूँ।
------© NIRAJ SHRIVASTAVA