Sunday 10 January 2016

चलो देश में कुछ आग लगाया जाय



चलो देश में कुछ आग लगाया जाय,
कुछ मंदिरों, कुछ मस्जिदों को गिराया जाय 

मुहब्बत के इस मुल्क में सब कुछ होता है,
बस राजनीती की आड़ में, ये सब करवाया जाय 

जवानों की शहादत का कोई मोल नहीं है यहाँ,
बस इलज़ामात का एक और दौर चलाया जाय 

यहाँ काफिला है यहाँ के हीं दुश्मनों का,
कुछ असहिष्णु लोगों को भी, यहाँ बुलाया जाय 

देखो भाई ! कोई सच में दूरदर्शी आया है,
चलो सब अपना सम्मान, वापस कर आया जाय 

--© नीरज श्रीवास्तव !

Thursday 4 June 2015

तुम जो साथ हो तो

तुम जो साथ हो तो,

बारिशें गुनगुनातीं हैं,
ख्वाहिशें रंग लाती हैं,
दिल थाम के ज़रा सुन भी लो,
हवाएं कुछ सुनाती हैं |

तुम जो साथ हो तो,
ये वादियाँ महकती हैं,
मेरी धडकनें बहकती हैं,
मेरी नज़रें भी सनम तेरी,
नज़रों से बात करती हैं|

तुम जो साथ हो तो,
फ़लक भी मुस्कुराती हैं,
खुशबुएँ इठलाती हैं,
नाजाने क्यूँ ये कायनात,
मुहब्बत के गीत सुनाती हैं |

तुम जो साथ हो तो ....
तुम जो साथ हो तो ....

---© Niraj Shrivastava

Sunday 21 December 2014

रहबर है तू, रहबर है तू

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

मेरे रूह में यूँ समाई है,
जैसे खुशबुओं सी बस छाई है,
तेरी दिलकशी सी अदाओं से,
अब चांदनी भी शरमाई है,
इस दर्द-ए-दिल का मरहम है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

तू मेरी ज़िन्दगी, मेरी जान है,
मेरे दिल का तू अरमान है,
तेरे सजदे में यूँ झुका हूँ मैं,
जैसे तू मेरा रमज़ान है,
मेरी ख्वाहिशों का अम्बर है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

ये मेरी धडकनों की रफ़्तार है,
या मेरी जान ये तेरा प्यार है,
कुछ समझ नहीं पाता हूँ मैं,
कैसा चढ़ा ये बुख़ार है,
एक खुशनुमा सा खबर है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

------© Niraj Shrivastava

Saturday 4 October 2014

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

कान्हा सब कहत हैं तोहे भगवान्,
पर मैं जान गयी तू है बेईमान.
कैसी फंसी आज हाय रे मेरी जान,
सूरतिया लागे तोरा कितना नादान ,
बात अब तोरी मोहे समझ में आई,

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

मन मोह लेवे जब बंसुरिया बजाये,
चहुँ ओर जैसे, मिठास भर जाए,
नाजाने कैसी चाल से तू पास बुलाये,
पास बुला के मोहे कितना सताए,
चालबाज़ तूने कैसी चाल बनाई,

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

-----© Niraj Shrivastava

Monday 1 September 2014

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

नैनों के बाण मोपे, ऐसे ये चलाये,
चुपके से आके हाय,घायल कर जाए,
सुध बिसरी से मोरी, मैं का करूँ हाय,
रोक ना पाऊं उसको, ऐसे वो सताए,
रोज़ हीं छेड़े मोहे, हाय रे मोरी सखियां |

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

जी घबराए मोरा , जब परदेस वो जाये ,
राह निहारत मोरी, अँखियाँ पथराये ,
जब भी वो जाए,  मोरा नैन छलकाए,
कैसे मैं रोकूँ उसको, कोई तो बताये 
मन हर्षाये जब, आये उसकी चिट्ठियाँ ,

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

---© Niraj Shrivastava

Saturday 16 August 2014

मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से

मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से,
अनुराग हर तरफ बिखरा दो फिर से,
तेरी मुरलिया मधुर गीत सुनाये,
सारे बंधन से ये हमको छुड़ाए,
शान्ति के फूल खिला दो फिर से ,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

मन मेरा हर क्षण कहता हो जैसे,
तेरे हीं रंग में मैं रंग जाऊं ऐसे,
रंग नाही छूटे चाहे,बीते सारी  रैना,
हर पल बस तुम मेरे मन में हीं रहना,
बस एक बार मुस्कुरा दो फिर से,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

मुरलिया तेरी हिय को भी चुराये,
सुनते हीं मन के सारे द्वेष मिटाये,
ऐसी मधुरता बोलो कहाँ से तुम लाये,
कैसे तुम इतने सुन्दर सुरों को सजाये,
वो अपनी सुन्दर लीला दिखा दो फिर से,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

-----© NIRAJ SHRIVASTAVA

Saturday 10 May 2014

माँ ही है सबसे महान

जिस दिन मुझको छुआ था,
उन पाकीज़ा हाँथों नें,
कर्ज़दार रहूंगा हरदम,
कहा हमारी साँसों  नें ,
संस्कार दिए उसने मुझको,
दुनिया में इंसान बनने की,
क्या कहूँ कितनी बरक़त है,
मेरी माँ के हाँथों में ।

सीने से लगाया उसने,
मुझको नाज़ों से पाला है,
उस से ही, धरती है स्वर्ग,
उस से ही, गगन निराला है,
अपना रुधिर पिलाकर जो,
नौ माह तक रखती है,
जननीं है देवी स्वरुप,
वही संसार को रचती है।

माँ के चरणों में चार धाम,
बन जाते हैं बस सारे काम,
धूलि चरणों कि लगा ललाट,
बन जा तक़दीर का सम्राट,
स्वर में गर तुम हूँकार भरो,
माँ की ही जय-जयकार करो,
फिर आगे ही बढ़ता जायेगा,
मानवता का हित कहलायेगा ।

सुन ले तु बस बात ये मान,
माँ ही है सबसे महान ||

-------© NIRAJ SHRIVASTAVA