Thursday 28 February 2013

अपने ही घर बन के मेहमान जिया करते हैं


अपने ही घर बन के मेहमान जिया करते हैं,
जानेमन खुद पे हम एहसान किया करते हैं।

तेरे दीदार से पायी है मैंने ऐसी कशिश,
अब तो हम दिल को गुलिस्तान किया करते हैं।

मयक़दों में भी अब तो बुझती नहीं प्यास मेरी,
तेरी नज़रों से अब जो जाम पीया करते हैं।

डर तो लगता नहीं अब आग में जल जाने से,
चराग-ए-इश्क में जलकर हम जिया करते हैं।

------Niraj Shrivastava

Monday 25 February 2013

हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |


जा रहा हूँ दूर तुझसे,  पर देश का क़र्ज़ चुकाता हूँ.
तुझसे मिलने को आखिरी बार, तिरंगे में लिपटा आता हूँ..
रोना मत तुम दुआ ये करना, लाल मेरा फिर से आये..
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

मिटटी की यह खुशबू माँ, मैं साथ अपने ले जाऊँगा.
पर तेरे हाथों की रोटी, खाने को ललचाऊंगा..
मर कर भी पास रहूँगा तेरे, क़सम यही मैं खाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

प्यार के फूल चढ़ा देना, मैं साथ उसे ले जाऊँगा.
चूमना मेरे माथे को, फिर चार कन्धों पे जाऊँगा..
मैं तो हूँ बस देश की खातिर, रस्म यही निभाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |

---- © Niraj Shrivastava

Sunday 17 February 2013

आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है


बीते लम्हों की कशिश बस अब याद आती है.
ज़हन में तेरी तस्वीर यूँ ही  बन जाती है..
पर क्या करूँ अब इनसे दिल बहलता ही नहीं...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

रहनुमा अब कौन है, ये समझ आता नहीं.
मुस्तक़बिल अब क्या होगा कोई बतलाता नहीं..
शंमा की ये लौ भी अब चेहरा तेरा दिखाती है...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

वस्ल का वो दिन सनम, नाजाने फिर कब आएगा.
हिज्र कि इस शब् में अब ये चाँद भी तड़पायेगा..
ये फ़िज़ायें, ये हवाएं, तेरी आवाज़ मुझे सुनाती हैं...
आ जाओ कि तुझे ये कायनात बुलाती है....

--------NIRAJ SHRIVASTAVA

Tuesday 12 February 2013

उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद


उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद.
यादों ने फिर घेर लिया, कई दिनों के बाद..
वक़्त ने दिखाई हमें बीते वक़्त की रफ़्तार...
लम्हे भी जवां हो गए कई दिनों के बाद....

थी कहीं कोई बात या था दुआओं का असर.
खुदा से तो नहीं बाकी, रह गया था कोई क़सर..
क्या बताऊँ आज हमारे कैसे थे हालात....
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

दूरियां जैसे सिमट गयीं, यादों के पन्ने खुल गए.
बीते पलों के अहसास, नज़रों में जैसे घुल गए..
बयां कर सकता नहीं लम्हों की वो सौगात...
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

देखते रहे एक दूजे को, वक़्त जैसे रुक गया.
दो दिलों के सामने आज, आसमां भी झुक गया..
आँखों से बस हो रही थी अश्कों की बरसात...
उनसे यूँ मुलाक़ात हुई कई दिनों के बाद....

-----------NIRAJ SHRIVASTAVA