अपने ही घर बन के मेहमान जिया करते हैं,
जानेमन खुद पे हम एहसान किया करते हैं।
तेरे दीदार से पायी है मैंने ऐसी कशिश,
अब तो हम दिल को गुलिस्तान किया करते हैं।
मयक़दों में भी अब तो बुझती नहीं प्यास मेरी,
तेरी नज़रों से अब जो जाम पीया करते हैं।
डर तो लगता नहीं अब आग में जल जाने से,
चराग-ए-इश्क में जलकर हम जिया करते हैं।
------Niraj Shrivastava
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