Sunday 21 December 2014

रहबर है तू, रहबर है तू

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

मेरे रूह में यूँ समाई है,
जैसे खुशबुओं सी बस छाई है,
तेरी दिलकशी सी अदाओं से,
अब चांदनी भी शरमाई है,
इस दर्द-ए-दिल का मरहम है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

तू मेरी ज़िन्दगी, मेरी जान है,
मेरे दिल का तू अरमान है,
तेरे सजदे में यूँ झुका हूँ मैं,
जैसे तू मेरा रमज़ान है,
मेरी ख्वाहिशों का अम्बर है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

ये मेरी धडकनों की रफ़्तार है,
या मेरी जान ये तेरा प्यार है,
कुछ समझ नहीं पाता हूँ मैं,
कैसा चढ़ा ये बुख़ार है,
एक खुशनुमा सा खबर है तू,

रहबर है तू, रहबर है तू,
मेरे इश्क़ का रहबर है तू,
मेरे आशिक़ी, मेरी बंदगी,
मेरे रूह का मजहब है तू |

------© Niraj Shrivastava

Saturday 4 October 2014

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

कान्हा सब कहत हैं तोहे भगवान्,
पर मैं जान गयी तू है बेईमान.
कैसी फंसी आज हाय रे मेरी जान,
सूरतिया लागे तोरा कितना नादान ,
बात अब तोरी मोहे समझ में आई,

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

मन मोह लेवे जब बंसुरिया बजाये,
चहुँ ओर जैसे, मिठास भर जाए,
नाजाने कैसी चाल से तू पास बुलाये,
पास बुला के मोहे कितना सताए,
चालबाज़ तूने कैसी चाल बनाई,

छोड़ो रे कान्हा, मोरी छोड़ो कलाई,
बीच राह छेड़त , तोहे लाज ना आई .

-----© Niraj Shrivastava

Monday 1 September 2014

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

नैनों के बाण मोपे, ऐसे ये चलाये,
चुपके से आके हाय,घायल कर जाए,
सुध बिसरी से मोरी, मैं का करूँ हाय,
रोक ना पाऊं उसको, ऐसे वो सताए,
रोज़ हीं छेड़े मोहे, हाय रे मोरी सखियां |

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

जी घबराए मोरा , जब परदेस वो जाये ,
राह निहारत मोरी, अँखियाँ पथराये ,
जब भी वो जाए,  मोरा नैन छलकाए,
कैसे मैं रोकूँ उसको, कोई तो बताये 
मन हर्षाये जब, आये उसकी चिट्ठियाँ ,

चितचोर मोरा बालम, माने ना बतियां,
करे ज़ोरा-ज़ोरी मोसे, सारी सारी रतियाँ |

---© Niraj Shrivastava

Saturday 16 August 2014

मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से

मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से,
अनुराग हर तरफ बिखरा दो फिर से,
तेरी मुरलिया मधुर गीत सुनाये,
सारे बंधन से ये हमको छुड़ाए,
शान्ति के फूल खिला दो फिर से ,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

मन मेरा हर क्षण कहता हो जैसे,
तेरे हीं रंग में मैं रंग जाऊं ऐसे,
रंग नाही छूटे चाहे,बीते सारी  रैना,
हर पल बस तुम मेरे मन में हीं रहना,
बस एक बार मुस्कुरा दो फिर से,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

मुरलिया तेरी हिय को भी चुराये,
सुनते हीं मन के सारे द्वेष मिटाये,
ऐसी मधुरता बोलो कहाँ से तुम लाये,
कैसे तुम इतने सुन्दर सुरों को सजाये,
वो अपनी सुन्दर लीला दिखा दो फिर से,
मधुसूदन मुरली बजा दो फिर से |

-----© NIRAJ SHRIVASTAVA

Saturday 10 May 2014

माँ ही है सबसे महान

जिस दिन मुझको छुआ था,
उन पाकीज़ा हाँथों नें,
कर्ज़दार रहूंगा हरदम,
कहा हमारी साँसों  नें ,
संस्कार दिए उसने मुझको,
दुनिया में इंसान बनने की,
क्या कहूँ कितनी बरक़त है,
मेरी माँ के हाँथों में ।

सीने से लगाया उसने,
मुझको नाज़ों से पाला है,
उस से ही, धरती है स्वर्ग,
उस से ही, गगन निराला है,
अपना रुधिर पिलाकर जो,
नौ माह तक रखती है,
जननीं है देवी स्वरुप,
वही संसार को रचती है।

माँ के चरणों में चार धाम,
बन जाते हैं बस सारे काम,
धूलि चरणों कि लगा ललाट,
बन जा तक़दीर का सम्राट,
स्वर में गर तुम हूँकार भरो,
माँ की ही जय-जयकार करो,
फिर आगे ही बढ़ता जायेगा,
मानवता का हित कहलायेगा ।

सुन ले तु बस बात ये मान,
माँ ही है सबसे महान ||

-------© NIRAJ SHRIVASTAVA

Wednesday 23 April 2014

अनजाने रास्तों पे यूँ हीं निकल जाता हूँ

अनजाने रास्तों पे यूँ हीं निकल जाता हूँ,
रेत हूँ मैं, हाँथों से फिसल जाता हूँ।  

परिंदा हूँ मैं, सरहदों का मोहताज़ नहीं,
जहां दिल करे, वहाँ परवाज़ लगाता हूँ।  

दरिया हूँ मैं, पर्वतों से डरता नहीं,
ठोकर लगते हैं, फिर भी रास्ते बनाता हूँ। 

मोहब्बत हूँ मैं, महसूस तो करो मुझे,
दिलों के दरमियाँ, खुशबू सा महक जाता हूँ। 

ख़ुशी हो या ग़म, हर जगह हूँ मैं,
पहचान लो मुझे, आँखों से बरस जाता हूँ। 

------© NIRAJ SHRIVASTAVA

Monday 31 March 2014

उनकी नज़रों से जाम पी तो लूं

उनकी नज़रों से जाम पी तो लूं
ज़िन्दगी थोड़ी तुझको जी तो लूं |

उनकी साँसों से ही ज़िंदा हूँ मैं,
सांसें उनको भी मैं, अपनी तो दूँ |

उनको देखूं तो धड़कता है ये दिल,
उनके इक़रार की भी, खुशखबरी तो लूं |

दर-पर्दा जब मिलतीं हैं, कहतीं हैं,
मैं तुम्हारी हीं बस, कहानी तो हूँ |

चलूँगा मौत मैं तेरे साथ भी,
उनकी अदाओं का मज़ा, अभी तो लूं |

-------© Niraj Shrivastava

* दर-पर्दा - चोरी छिपे

Saturday 15 February 2014

बड़ी संजीदगी से रिश्तों को निभाते हैं हम

बड़ी संजीदगी से रिश्तों को निभाते हैं हम,
ऐसे ही एहतराम-ए-वफ़ा जताते हैं हम ।

इख़लास ने ख़ुद आकर कहा ये मुझसे,
मक़बरे तक को ताज महल बनाते हैं हम ।

ज़राहत-ए-दिल का मरहम पाने को यारों,
आस्तान-ए-यार पर अक्सर ही जाते हैं हम ।

उनकी नज़रों से जाम पीते पीते हर पल,
ज़िन्दगी को यूँ  पुरकशिश बनाते हैं हम ।

अब क्या कहूं मैं अहद-ए-वफ़ा कि तासीर,
बस यार के सजदे में झुक जाते हैं हम ।

-------- © Niraj Shrivastava

इखलास :- मुहब्बत
ज़राहत-ए-दिल :- दिल का घाव
आस्तान-ए-यार:- यार की चौखट
पुरकशिश:- खूबसूरत
तासीर:- प्रभाव 

Saturday 18 January 2014

ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

कभी जागती, कभी जगाती है,
कभी भागती, कभी भगाती है,
कभी दौड़ती अनदेखी राहों पे,
कभी उड़ती ये आसमानों में,

इसकी हसरतें! कैसी रंगीनी है,
ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

आ जाती है किसी की बातों में,
सपने बुनती है अकेली रातों में,
आता नहीं जब कुछ हाथ में,
कहती है दोस्तों के साथ में,

ऐ भाई! चल दारु अभी पीनी है,
ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

सपनो कि बस एक उड़ान में,
पूरे करने की ताम-झाम में,
कुछ करो तो डराती है,
कुछ ना करो तो सताती है,

साली ये कैसी छीना-छीनी है,
ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

ये ज़िन्दगी! साली कमीनी है।

------© NIRAJ SHRIVASTAVA