Tuesday 26 March 2013

जग तो जीत लिया पर कैसे मन की होए जीत


जग तो जीत लिया पर कैसे मन की होए जीत,
दिल भी जीत सकूँ मैं ऐसा कौन सा गाऊं गीत,
कौन सा जतन करू की जिससे कोई दुखी न होए,
समझ नहीं आता कुछ तो मैं हो जाता भयभीत।

धर्म पर हो रही लड़ाई कैसी जग की रीत,
प्रेम के धुन सुनूँ कैसे और कैसा हो संगीत,
शान्ति का कोई मार्ग ढूंढकर कहाँ से लेकर आऊं,
कैसे मन को स्वच्छ करूँ, भूलूं दुःख भरे अतीत।

कैसे मैं इंसान बनूँ और कैसे बनूँ पुनीत,
कैसा मैं बदलाव करूँ की सब बन जाएँ मीत,
तू ही राह दिखा प्रभु! सुन ले मेरी व्यथा करुण,
ऐसा कुछ करूँ जग में बस सत्य की होए जीत।

-------Niraj Shrivastava

Thursday 14 March 2013

दिल के इन दरख्तों पर, नाम बस तुम्हारा है


दिल के इन दरख्तों पर, नाम बस तुम्हारा है,
दर्द के समंदर पर, हक़ तो बस हमारा है।

क्या दुआ मैं मांगू अब, देखकर आसमां की तरफ,
जो खुद हो रहा है फ़ना, टूटा हुआ सितारा है।

तुम जो हमसे मिलते थे, बस यही तो कहते थे,
दिल जो ये तुम्हारा है, आशियाँ अब हमारा है।

शब्-ओ-रोज़ सोचता हूँ मैं, क्या है मिल्कियत मेरी,
हिजरतों की आंधी में, यादों का जो सहारा है।

-----Niraj Shrivastava

Saturday 9 March 2013

"चाय की चुस्की"


सुबह सुबह सूरज की किरणें,
आतीं हैं जब पंख फैलाए,
परवाज़ हथेली पर रखकर,
जब हम नींद से जग जाएँ,
उठते ही आदत है जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

जिंदगी के हलचल  में,
हर जगह और हर पल में,
दौड़ते दौड़ते अक्सर जब,
थक जाते आते जाते ही,
सब कुछ भूल जाते  हैं,
जिसे होठों  से लगाते ही,
ज़रुरत है सबको जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

साथ जब मनमीत हो,
बज रहा कोई संगीत हो,
बैठें हों जब पास में,
रिश्तों के अहसास में,
अक्सर मिठास लेकर आये,
अक्सर ही खुशबू महकाए,
क्या कहूँ क्या बात है उसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

हो रही बरसात हो,
दोस्तों की जमात हो,
पुरानी जब कोई बात हो,
हँसने की सौगात हो,
बात जब उसकी चल जाए,
चेहरे पर मुस्कान जगाये,
कर रहा हूँ बात जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

-------Niraj Shrivastava

Monday 4 March 2013

तेरी आँखों की इनायत और करम लिख दूंगा


तेरी आँखों की इनायत और करम लिख दूंगा,
तेरी सूरत को मैं दुनिया का भरम लिख दूंगा।

आते हो दिल के दरवाज़े पे जो दस्तक देकर,
अपने दिल को भी मैं अल्लाह का करम लिख दूंगा।

ऐसे देखो न तुम शरमा के अब यूँ मेरी तरफ,
तेरी मुस्कान को मैं ज़ख्मों का मरहम लिख दूंगा।

तेरे अंदाज़-ए-हुस्न को बयां करते हैं जो लोग,
उनके लब्जों को तो मैं बस एक वहम लिख दूंगा।।

------Niraj Shrivastava