Friday 26 July 2013

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ |

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ, 
रोज़ काम करने खाली पेट आता हूँ,
एक रुपये में भी भर सकता है मेरा पेट,
रोज़ ऐसी ख्वाहिश मैं लपेट लाता हूँ।

मैं हूँ गरीब, हौसला नहीं तोड़ता,
ज़िन्दगी की मुश्किलों से मुह नहीं मोड़ता,
देश के राजनेता कहते हैं यूँ आजकल,
अट्ठाईस रुपये कमाने वाला गरीब नहीं होता।

बच्चे को खिलाऊं या देखूं माँ की हालत,
मौन पड़ी है हमारे देश की अदालत,
चुनाव के समय हमसे होते हैं कई वादे,
बाद में होती है लूट-पाट की वकालत।

फिर भी ये ज़िन्दगी जिये जा रहा हूँ,
घूँट मैं मुश्किलों के पिये जा रहा हूँ,
कोई तो आएगा जो समझेगा दर्द हमारा,
रोज़ दिलासा दिल को यही दिए जा रहा हूँ।

------Niraj Shrivastava

Saturday 13 July 2013

कई मायूस रातों का हिसाब अभी बाकी है

कई मायूस रातों का हिसाब अभी बाकी है,
कई बातों के खुलने का किताब अभी  बाकी है।

जिनके आने से अक्सर महकते थे ये शज़र,
उनके इंतज़ार में आनेवाला सैलाब अभी बाकी है।

सवालों के दायरे से वो कभी गुज़रे हीं नहीं,
उन्हें क्या पता, कितने जवाब अभी बाकी हैं।

सेहराओं को भी हर बार समंदर जो कर दे,
उनके नज़रों से पीनेवाली शराब अभी बाकी है।

आज मुक़द्दर में मेरी ज़िन्दगी अता कर मेरे मौला,
स्याह रातों में आनेवाला माहताब अभी बाकी है।

----------Niraj Shrivastava

Saturday 6 July 2013

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है,
कोई बता दे ये किस रास्ते से गुज़रती है।

जब भी दीद हुई तो सोचता हूँ कि वो,
आँखों से नाजाने दिल में क्यूँ उतरती है।

बहक जाते हैं क़दम उसके  सामने हरदम,
सोचता हूँ, ऐसा होना भी भला कुदरती है।

लब्जों की तो अब कोई अहमियत ही नहीं,
इस जहां से परे उसकी खूबसूरती है।

अरमानो के आईने बयान करते हैं मुझे,
दिल की धडकनें भला क्यों नहीं सुधरती हैं।

-------Niraj Shrivastava