Saturday 6 July 2013

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है

सुना है कि तकदीर बनती है, बिगड़ती है,
कोई बता दे ये किस रास्ते से गुज़रती है।

जब भी दीद हुई तो सोचता हूँ कि वो,
आँखों से नाजाने दिल में क्यूँ उतरती है।

बहक जाते हैं क़दम उसके  सामने हरदम,
सोचता हूँ, ऐसा होना भी भला कुदरती है।

लब्जों की तो अब कोई अहमियत ही नहीं,
इस जहां से परे उसकी खूबसूरती है।

अरमानो के आईने बयान करते हैं मुझे,
दिल की धडकनें भला क्यों नहीं सुधरती हैं।

-------Niraj Shrivastava

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