Friday 26 July 2013

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ |

कितने मंज़र आँखों में समेट लाता हूँ, 
रोज़ काम करने खाली पेट आता हूँ,
एक रुपये में भी भर सकता है मेरा पेट,
रोज़ ऐसी ख्वाहिश मैं लपेट लाता हूँ।

मैं हूँ गरीब, हौसला नहीं तोड़ता,
ज़िन्दगी की मुश्किलों से मुह नहीं मोड़ता,
देश के राजनेता कहते हैं यूँ आजकल,
अट्ठाईस रुपये कमाने वाला गरीब नहीं होता।

बच्चे को खिलाऊं या देखूं माँ की हालत,
मौन पड़ी है हमारे देश की अदालत,
चुनाव के समय हमसे होते हैं कई वादे,
बाद में होती है लूट-पाट की वकालत।

फिर भी ये ज़िन्दगी जिये जा रहा हूँ,
घूँट मैं मुश्किलों के पिये जा रहा हूँ,
कोई तो आएगा जो समझेगा दर्द हमारा,
रोज़ दिलासा दिल को यही दिए जा रहा हूँ।

------Niraj Shrivastava

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