Saturday 29 December 2012

दामिनी का पत्र


माँ सबको छोड़ कर जा रही हूँ...
मत रोना माँ, पिताजी, भैया और सखियाँ.

मुझे अपनी यादों में जरूर रखना...
याद रखना माँ एक बेटी थी तेरी...
दिल से दूर न करना पिताजी मुझे...
याद रखना भैया एक बहन भी थी तेरी....

मुझे लड़की होने का कोई अफ़सोस नहीं..
क्योंकि गलती मैंने नहीं की थी....
दरिंदगी और हैवानियत मेरे अन्दर नहीं थी...
पर यह कैसा इन्साफ है की सजा मुझे मिली...

माँ तुम्हारे आंसू मुझे इस जहाँ से रुखसत होने नहीं देंगे...
पिताजी, भैया ! मैं पहले ही बहुत तड़प चुकी हूँ...
आपकी सिसकियाँ और आंसू मुझे और तडपायेंगी...
इसीलिए रोना मत...

बिदाई का समय आ गया है...
जा रही हूँ मैं.....
पर इतना याद रखना....

"""एक बेटी थी""""

"आपकी लाडली, दामिनी" 

-------NIRAJ SHRIVASTAVA-------------

Monday 24 December 2012

भूल नहीं सकता मैं यारों, कॉलेज के वो प्यारे दिन.


भूल नहीं सकता मैं यारों, कॉलेज के वो प्यारे दिन.
बीती न कभी दिन-रात जहाँ, वो सारे दोस्तों के बिन..
कैंटीन (Canteen) में जाकर जब, उधार समोसे खाते थे,
पैसे पास न होकर भी, अक्सर यूँ मौज उड़ाते थे..
वहीँ बैठकर यारों संग, जब जमघट रोज़ लगाते थे,
चिल्ला चिल्ला कर गाने गाकर,टेबल खूब बजाते थे..

कैसे भूल सकता हूँ यारों, कॉलेज का वो पहला प्यार,
उस पर कोई कमेंट करे तो, कहता "तेरी भाभी है यार".
उसको ये भी पता न था, कोई उसका दीवाना है,
यही सोचता था दिन रात, बस उससे "हाँ" करवाना है.
मन को मार कर भी जब, हम लाइब्रेरी में जाते थे,
इम्प्रैशन (Impression) के चक्कर में यूँ, घंटो वहां बिताते थे,

क्लास में जाते अक्सर यारो, बोर हम हो जाते थे,
कैसे निकलूं इस झंझट से, रोज़ प्लान बनाते थे.
एक्जाम्स (Exams) के पेपर आने पर, भगवान् याद आ जाते थे,
पास होने की लालच में,बस रोज़ प्रसाद चढाते थे.
फेयरवेल (Farewell) की शाम किसी की, ना बीती आंसुओं के बिन,
भूल नहीं सकता मैं यारों, कॉलेज के वो प्यारे दिन.

-----Niraj Shrivastava

Saturday 22 December 2012

याद बहुत हम आयेंगे


जब मेरे गीतों को सुनोगे, याद बहुत हम आयेंगे.
जब लबों से कह न सकोगे, याद बहुत हम आयेंगे.
अहसास अपने दिल का तुम, मेरे गीतों में पाकर,
उनको जब भी याद करोगे, याद बहुत हम आयेंगे.

सपनों में अक्सर उनसे जब मिलने तुम जाओगे,
इकरार-ए-मोहब्बत कर न सको जब, मेरे गीतों को गाओगे.
सुनकर मोती जैसे लब्जों को , जब नैन वो झुक जायेंगे,
ज़िन्दगी खुबसूरत लगेगी, तब याद बहुत हम आयेंगे.

गीत मेरे अनमोल रहेंगे, जवां दिलों की धड़कन में,
सदियों तक गाये जायेंगे, जज़्बातों की तड़पन में.
मेरे प्यारे गीतों से तुम, जब रिश्तों को सुलझाओगे,
हर पहेली सुलझेगी, तब याद बहुत हम आयेंगे..

----Niraj Shrivastava

Thursday 20 December 2012

तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं


तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं,
कि शायद अब हम एक दूजे के दिल में रहते हैं.
नज़रें मिलते ही धडकनें ठहर सी जातीं हैं,
मुस्कुराता रहता हूँ और लोग दीवाना कहते हैं...

जब से पिया है तेरी मदमस्त नज़रों का जाम,
नशा यूँ छाया है कि मैं हो गया बदनाम.
हर वक़्त अब मिलने को तरसते रहते हैं,
तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं..

दिल के इतने पास हो तुम, फिर भी अभी एक दूरी है,
मिलने पर बस चुप रहते हैं, ये कैसी मजबूरी है.
इतनी क़ुरबत है तो फिर दर्द-ए-दिल क्यों सहते हैं,
तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं...

-------Niraj Shrivastava

Tuesday 18 December 2012

हर तरफ बस नफरतों का बीज सा बोया हुआ है

हे कृष्ण! देख तेरी धरा पर क्या हुआ है,
अधर्मियों के सामने, आज धर्म सोया हुआ है..
हर दिशा में हर तरफ, बस चीखें सुनाई देतीं हैं,
और हर तरफ बस नफरतों का बीज सा बोया हुआ है..

आज बहन बेटियों पर हो रहा अत्याचार है,
खामोश है क्यों आज तू, यह कैसा व्यवहार है..
शायद अब रक्षकों का, आत्मा तक संडा हुआ है,
और हर तरफ बस नफरतों का बीज सा बोया हुआ है..

कर्म अगर प्रधान है, तो ऐसे कर्म क्यों होते है,
न्याय की दहलीज पर अब,अश्रु के बूँद क्यों होते हैं..
पापियों ने न्याय के रुधिर से हाथ धोया हुआ है,
और हर तरफ बस नफरतों का बीज सा बोया हुआ है..

खो गयीं हैं खुशबुएँ अब फूलों की क्यारियों से,
मिल गए हैं सारथी अब, बारूद के व्यापारियों से..
तेरी बनायी धरती पर, मानवता खोया हुआ है,
और हर तरफ बस नफरतों का बीज सा बोया हुआ है..

-----Niraj Shrivastava

Monday 17 December 2012

चाँद को देखता रहा और रात बस जाती रही


मोहब्बत की दीवानगी कुछ इस तरह छाती रही,
हिचकियों के साथ बस याद तू आती रही.
हवाएं लेकर आ गयीं जब, तेरी मौजूदगी का एहसास,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

हर वक़्त गूंजती है दिल में, अब तेरी वो आवाज़,
सुनते ही जिसको हो गया था, इश्क का आग़ाज़.
दिल के एहसास को तू नज़रों रे बतलाती रही,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

चाँद जब जब बादलों के आगोश में खो जाता है,
धडकनों की रफ़्तार को नजाने क्या हो जाता है.
मोहब्बतों के गीतों को, कायनात सुनाती रही,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

-----Niraj Shrivastava

Sunday 16 December 2012

मुझको अब यूँ तनहा कर, क्या नींद तुम्हें आ जाती है

मुझको अब यूँ तनहा कर, क्या नींद तुम्हें आ जाती है,
आ जाता हैं चैन तुम्हें, अब रैन तुम्हें क्या भाती है,
सपनों की महफ़िल में क्या, आराम तुम्हें मिल जाता है,
सावन बदरा की बातें क्या, अब तुझको नहीं सताती हैं ।

देख देख एक दूजे को, दिन रात गुज़रते थे ऐसे,
सदियों की बस दूरियां, पल भर में मिटते थे जैसे,
यादों के सागर को तू, क्या सहज पार कर जाती है,
मुझको अब यूँ तनहा कर, क्या नींद तुम्हें आ जाती है

कसमों वादों से बुना था, हमने अपना संसार कभी,
कहते थे एक दूजे से, कम न होगा ये प्यार कभी,
बेसुध होकर दीवानों सा, क्या तू भी अश्क बहाती है,
मुझको अब यूँ तनहा कर, क्या नींद तुम्हें आ जाती है

-----© NIRAJ SHRIVASTAVA

Saturday 15 December 2012

तन्हाई की आँधियों से खुदा बता कैसे लडूं

तन्हाई की आँधियों से खुदा बता कैसे लडूं,
हर तरफ सूनापन है, किस राह पर कैसे चलूँ...
कैसे चलूँ उस राह पर बेवफ़ाइयां जहाँ बिखरी पड़ीं,
कैसे हटाऊँ मैं इन्हें, कदमों को मैं कैसे रखूं....


मंज़िल अब दिखती नहीं यादों के घने कोहरे से,
खुद ही घिर गया हूँ मैं अपने वफ़ा के मोहरे से...
ज़हन में उनकी तस्वीर लेकर आगे मैं कैसे बढूँ,
तन्हाई की आँधियों से खुदा बता कैसे लडूं......


रिश्ता भी अब टूट गया उन खेतों उन खलिहानों से,
लहलहाते थे फ़सल जहाँ उनकी मुस्कानों से....
बेवक़्त न निकलो आँखों से, अश्कों से कैसे कहूँ,
तन्हाई की आँधियों से खुदा बता कैसे लडूं.......

------- Niraj Shrivastava

Thursday 13 December 2012

ए खुदा ये मुक़द्दर

ए खुदा ये मुक़द्दर तू बनाता है क्यों,
कुछ चेहरे को यूँ ख़ास बनाता है क्यों....
बनाता है क्यों दिल में तू जज़्बात यूँ ही,
फिर दर्द भर के दिल को तड़पाता है क्यों....

तुझे एहसास नहीं बिछड़ने का दर्द क्या है,
फिर ऐसे फैसले पर अपनी मुहर लगाता है क्यों...
दिल के पावन एहसास को जब वो समझता ही नहीं,
फिर ऐसे दिल के पास तू ले जाता है क्यों....

दिल में बस दर्द का समंदर है और कुछ नहीं,
जिंदा रहते इंसान इसमें डूब जाता है क्यों...
तुझ से इतनी गलतियाँ होने के बाद भी,
इस जहां में तू खुदा कहलाता है क्यों....

-----Niraj Shrivastava

Tuesday 11 December 2012

कैसे कहूँ वो एहसास-ए-ग़म का मंज़र


कैसे कहूँ वो एहसास-ए-ग़म का मंज़र कैसा है,
दिल की गहराइयों में उतरता एक खंज़र जैसा है...
दिल के तारों से बंधा था जो रिश्ता उनसे,
वो टूट गया, अब आशियाँ एक बंज़र जैसा है...

जो आँखें मिलाकर कभी शरमा जाते थे,
आज महफिल में एक अजनबी सवाल जैसा है...
शुक्र है की बाकी है अभी चेहरे की पहचान,
हाथ मिलाकर पूछते हैं कि दिल का हाल कैसा है...

जिसकी मुस्कान को ग़ज़ल और चेहरे को गुलाब लिखते थे,
आज दिल की स्याही सूख गयी और जाना यह एहसास कैसा है...
अब क्या लिखूं दर्द-ए-दिल का हाल दोस्तों,
उनकी ज़फाओं और हमारी वफाओं का इतिहास कैसा है.....

-----Niraj Shrivastava

कोई शख्स ऐसा भी


कोई शख्स ऐसा भी कभी मिलता है राह-ए-ज़िन्दगी में,
कि मिलते ही वो बस अपना सा लगता जाता है.
रोज़ दुआओं में उन्हें पाने कि चाहत रखता हूँ,
पर जब भी मिलता है बस सपना सा लगता जाता है.

ह़र रोज़, हर पल उसको ही सोचता हूँ ,
कि सोचते ही बस दिल सहम सा जाता है.
 ए खुदा तू इस जहाँ में है कहीं अगर,
तो देख मेरा दर्द तू क्यों नहीं पिघल जाता है.

गर जानता है कि मिल नहीं सकता वोह कभी,
फिर ऐसे शख्स से तू क्यों हमें मिलाता है.
पत्थर है तू और पत्थर है तेरी शख्सियत,
शायद इसीलिए पत्थर को भी खुदा कहा जाता है.

----Niraj Shrivastava