Sunday 27 January 2013

दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं


दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं,
कहने को दूर हैं, फिर भी बहुत करीब हैं।
पहली बार मिले हैं दोनों, पर इन्हें मालुम है,
अजनबी कोई नहीं,एक दूजे के ये रक़ीब हैं।।

कितनी सदियाँ बीत गयीं हैं, तुम्हारे इंतज़ार में,
मिल गयीं हैं जन्नतें अब, तुम्हारे ही प्यार में।
ऐसे अहसास से बंधे हैं दोनों, कितने खुशनसीब हैं,
दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं।।

धडकनें ठहर जातीं जब सामने ये आते हैं,
लब्ज़ दे  जाते हैं धोखा, कुछ नहीं कह पाते हैं।
सोचते हैं मन ही मन अब, ये मेरे हबीब हैं,
दो दिलों के दरमियाँ ये फ़ासले अजीब हैं।।

--------Niraj Shrivastava

Thursday 24 January 2013

कुछ और है !!


अक्सर मुश्किलात होती है राह-ए-मुहब्बत में,
पर उस पर चलने का मज़ा कुछ और है।
लोग कहते हैं की सिवाय दर्द के कुछ भी नहीं यहाँ,
पर इस दर्द को सहने का मज़ा कुछ और है।।

दौलत, शोहरत ना हो तो इस प्यार में दोस्तों,
असलियत जान लोगे की उनकी रज़ा कुछ और है।
दर्द-ए-समंदर भी आ जाए तो कुछ ग़म नहीं,
पर मुहब्बत में जो मिले, वो सज़ा कुछ और है।।

बड़ी शिद्दत से किया था मुहब्बत हमने भी कभी,
पर बेवफाइयों से जो मिला वो क़ज़ा (१) कुछ और है।
वो ज़माना और था जब हीर रांझा हुआ करते थे,
आज तो मुहब्बत निभाने की अदा कुछ और है।।

(१) क़ज़ा-(To fall under the shadow of death )

-------NIRAJ SHRIVASTAVA

Friday 18 January 2013

दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!


उनसे नज़रें मिलाकर आया हूँ दोस्तों!
एक अजनबी एहसास साथ लाया हूँ दोस्तों!
उनको देखा तो बस देखता ही रह गया,
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

नयी सी क्यों लगती है आज सारी कायनात,
कल तक तो वही दिन था और थी वही रात,
नींद आती नहीं अब खुद को जगाया हूँ दोस्तों!
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

कैसे बयाँ करूँ मैं उनसे दिल के जज़बातों को,
कैसे जवाब दूंगा मैं उनके सवालातों को,
उनकी यादों में दुनिया को भुलाया हूँ दोस्तों!
दिल उन्हीं के पास छोड़ आया हूँ दोस्तों!

---Niraj Shrivastava

Tuesday 8 January 2013

कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं


कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं,
इस भीड़ में अब कहाँ इंसान खो गए हैं।
खुश होते हैं एक दूजे का लहू बहाकर,
धर्म के नाम पर सब हैवान हो गए हैं।।

ईश्वर और अल्लाह को अलग समझते हैं,
धर्म को बेचते हैं ये, गलत समझते हैं।
ईमान तो दिखता नहीं, बेइमान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं।।

अमन का पैग़ाम है, गीता और क़ुरान में,
कोई भी अंतर नहीं है कलमा और पुराण में।
इंसानियत को मार कर, शैतान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं।।

हथियार नहीं पहचानते, हिन्दू मुसलमान,
मरता कोई धर्म नहीं, मरता है इंसान।
बहुत ज्यादा , शमशान और कब्रिस्तान हो गए हैं,
कई हिन्दू , कई मुसलमान हो गए हैं,।।

-----Niraj Shrivastava

Wednesday 2 January 2013

मीरा की पुकार--"मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा."


मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा..
पगली बन के घूमूं वन वन, अब तो आजा..
तेरे ही रंग में देख रंग गयी हूँ मैं,
तेरी हीं अब राह निहारूं, अब तो आजा...

हे गिरिधारी! हे गोपाल! दर्शन देदे आज तू.
दया कर अब इस पगली पर, सुन ले मेरी पुकार तू..
आरती गाये तेरी जोगन, अब तो आजा...
मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा....

तेरी एक झलक को प्यासी हूँ हे मधुसुदन!
तुझ से ही बस जुड़ गया है मन का बंधन.
तरस खा मुझ पर हे भगवन, अब तो आजा..
मन तो तेरा हुआ रे मोहन, अब तो आजा.

----Niraj Shrivastava