अक्सर मुश्किलात होती है राह-ए-मुहब्बत में,
पर उस पर चलने का मज़ा कुछ और है।
लोग कहते हैं की सिवाय दर्द के कुछ भी नहीं यहाँ,
पर इस दर्द को सहने का मज़ा कुछ और है।।
दौलत, शोहरत ना हो तो इस प्यार में दोस्तों,
असलियत जान लोगे की उनकी रज़ा कुछ और है।
दर्द-ए-समंदर भी आ जाए तो कुछ ग़म नहीं,
पर मुहब्बत में जो मिले, वो सज़ा कुछ और है।।
बड़ी शिद्दत से किया था मुहब्बत हमने भी कभी,
पर बेवफाइयों से जो मिला वो क़ज़ा (१) कुछ और है।
वो ज़माना और था जब हीर रांझा हुआ करते थे,
आज तो मुहब्बत निभाने की अदा कुछ और है।।
(१) क़ज़ा-(To fall under the shadow of death )
-------NIRAJ SHRIVASTAVA
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