भूल नहीं सकता मैं यारों, कॉलेज के वो प्यारे दिन.
बीती न कभी दिन-रात जहाँ, वो सारे दोस्तों के बिन..
कैंटीन (Canteen) में जाकर जब, उधार समोसे खाते थे,
पैसे पास न होकर भी, अक्सर यूँ मौज उड़ाते थे..
वहीँ बैठकर यारों संग, जब जमघट रोज़ लगाते थे,
चिल्ला चिल्ला कर गाने गाकर,टेबल खूब बजाते थे..
कैसे भूल सकता हूँ यारों, कॉलेज का वो पहला प्यार,
उस पर कोई कमेंट करे तो, कहता "तेरी भाभी है यार".
उसको ये भी पता न था, कोई उसका दीवाना है,
यही सोचता था दिन रात, बस उससे "हाँ" करवाना है.
मन को मार कर भी जब, हम लाइब्रेरी में जाते थे,
इम्प्रैशन (Impression) के चक्कर में यूँ, घंटो वहां बिताते थे,
क्लास में जाते अक्सर यारो, बोर हम हो जाते थे,
कैसे निकलूं इस झंझट से, रोज़ प्लान बनाते थे.
एक्जाम्स (Exams) के पेपर आने पर, भगवान् याद आ जाते थे,
पास होने की लालच में,बस रोज़ प्रसाद चढाते थे.
फेयरवेल (Farewell) की शाम किसी की, ना बीती आंसुओं के बिन,
भूल नहीं सकता मैं यारों, कॉलेज के वो प्यारे दिन.
-----Niraj Shrivastava
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