Tuesday 11 December 2012

कैसे कहूँ वो एहसास-ए-ग़म का मंज़र


कैसे कहूँ वो एहसास-ए-ग़म का मंज़र कैसा है,
दिल की गहराइयों में उतरता एक खंज़र जैसा है...
दिल के तारों से बंधा था जो रिश्ता उनसे,
वो टूट गया, अब आशियाँ एक बंज़र जैसा है...

जो आँखें मिलाकर कभी शरमा जाते थे,
आज महफिल में एक अजनबी सवाल जैसा है...
शुक्र है की बाकी है अभी चेहरे की पहचान,
हाथ मिलाकर पूछते हैं कि दिल का हाल कैसा है...

जिसकी मुस्कान को ग़ज़ल और चेहरे को गुलाब लिखते थे,
आज दिल की स्याही सूख गयी और जाना यह एहसास कैसा है...
अब क्या लिखूं दर्द-ए-दिल का हाल दोस्तों,
उनकी ज़फाओं और हमारी वफाओं का इतिहास कैसा है.....

-----Niraj Shrivastava

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