Tuesday 11 December 2012

कोई शख्स ऐसा भी


कोई शख्स ऐसा भी कभी मिलता है राह-ए-ज़िन्दगी में,
कि मिलते ही वो बस अपना सा लगता जाता है.
रोज़ दुआओं में उन्हें पाने कि चाहत रखता हूँ,
पर जब भी मिलता है बस सपना सा लगता जाता है.

ह़र रोज़, हर पल उसको ही सोचता हूँ ,
कि सोचते ही बस दिल सहम सा जाता है.
 ए खुदा तू इस जहाँ में है कहीं अगर,
तो देख मेरा दर्द तू क्यों नहीं पिघल जाता है.

गर जानता है कि मिल नहीं सकता वोह कभी,
फिर ऐसे शख्स से तू क्यों हमें मिलाता है.
पत्थर है तू और पत्थर है तेरी शख्सियत,
शायद इसीलिए पत्थर को भी खुदा कहा जाता है.

----Niraj Shrivastava

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