तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं,
कि शायद अब हम एक दूजे के दिल में रहते हैं.
नज़रें मिलते ही धडकनें ठहर सी जातीं हैं,
मुस्कुराता रहता हूँ और लोग दीवाना कहते हैं...
जब से पिया है तेरी मदमस्त नज़रों का जाम,
नशा यूँ छाया है कि मैं हो गया बदनाम.
हर वक़्त अब मिलने को तरसते रहते हैं,
तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं..
दिल के इतने पास हो तुम, फिर भी अभी एक दूरी है,
मिलने पर बस चुप रहते हैं, ये कैसी मजबूरी है.
इतनी क़ुरबत है तो फिर दर्द-ए-दिल क्यों सहते हैं,
तुम्हारे झुकते नैन अक्सर ही मुझे ये कहते हैं...
-------Niraj Shrivastava
No comments:
Post a Comment