Monday 17 December 2012

चाँद को देखता रहा और रात बस जाती रही


मोहब्बत की दीवानगी कुछ इस तरह छाती रही,
हिचकियों के साथ बस याद तू आती रही.
हवाएं लेकर आ गयीं जब, तेरी मौजूदगी का एहसास,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

हर वक़्त गूंजती है दिल में, अब तेरी वो आवाज़,
सुनते ही जिसको हो गया था, इश्क का आग़ाज़.
दिल के एहसास को तू नज़रों रे बतलाती रही,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

चाँद जब जब बादलों के आगोश में खो जाता है,
धडकनों की रफ़्तार को नजाने क्या हो जाता है.
मोहब्बतों के गीतों को, कायनात सुनाती रही,
चाँद को देखता रहा, और रात बस जाती रही..

-----Niraj Shrivastava

1 comment:

  1. Wo aati rahi wo jaati rahi
    Humein muhabbat k sabjbag dikhati rahi
    Humne to karli thi aankein band apni
    Aur wo humein jinda kabra me dafnati rahi

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