जग तो जीत लिया पर कैसे मन की होए जीत,
दिल भी जीत सकूँ मैं ऐसा कौन सा गाऊं गीत,
कौन सा जतन करू की जिससे कोई दुखी न होए,
समझ नहीं आता कुछ तो मैं हो जाता भयभीत।
धर्म पर हो रही लड़ाई कैसी जग की रीत,
प्रेम के धुन सुनूँ कैसे और कैसा हो संगीत,
शान्ति का कोई मार्ग ढूंढकर कहाँ से लेकर आऊं,
कैसे मन को स्वच्छ करूँ, भूलूं दुःख भरे अतीत।
कैसे मैं इंसान बनूँ और कैसे बनूँ पुनीत,
कैसा मैं बदलाव करूँ की सब बन जाएँ मीत,
तू ही राह दिखा प्रभु! सुन ले मेरी व्यथा करुण,
ऐसा कुछ करूँ जग में बस सत्य की होए जीत।
-------Niraj Shrivastava
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