Saturday 9 March 2013

"चाय की चुस्की"


सुबह सुबह सूरज की किरणें,
आतीं हैं जब पंख फैलाए,
परवाज़ हथेली पर रखकर,
जब हम नींद से जग जाएँ,
उठते ही आदत है जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

जिंदगी के हलचल  में,
हर जगह और हर पल में,
दौड़ते दौड़ते अक्सर जब,
थक जाते आते जाते ही,
सब कुछ भूल जाते  हैं,
जिसे होठों  से लगाते ही,
ज़रुरत है सबको जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

साथ जब मनमीत हो,
बज रहा कोई संगीत हो,
बैठें हों जब पास में,
रिश्तों के अहसास में,
अक्सर मिठास लेकर आये,
अक्सर ही खुशबू महकाए,
क्या कहूँ क्या बात है उसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

हो रही बरसात हो,
दोस्तों की जमात हो,
पुरानी जब कोई बात हो,
हँसने की सौगात हो,
बात जब उसकी चल जाए,
चेहरे पर मुस्कान जगाये,
कर रहा हूँ बात जिसकी,
वो है अपनी , "चाय की चुस्की" ।

-------Niraj Shrivastava

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