जा रहा हूँ दूर तुझसे, पर देश का क़र्ज़ चुकाता हूँ.
तुझसे मिलने को आखिरी बार, तिरंगे में लिपटा आता हूँ..
रोना मत तुम दुआ ये करना, लाल मेरा फिर से आये..
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |
मिटटी की यह खुशबू माँ, मैं साथ अपने ले जाऊँगा.
पर तेरे हाथों की रोटी, खाने को ललचाऊंगा..
मर कर भी पास रहूँगा तेरे, क़सम यही मैं खाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |
प्यार के फूल चढ़ा देना, मैं साथ उसे ले जाऊँगा.
चूमना मेरे माथे को, फिर चार कन्धों पे जाऊँगा..
मैं तो हूँ बस देश की खातिर, रस्म यही निभाता हूँ...
हर जनम में माँ तेरा हीं बेटा बनना चाहता हूँ |
---- © Niraj Shrivastava
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