उन बदनाम गलियों में, दुकानदारी आज भी है,
अरमानों को रौंदने की, खरीदारी आज भी है ।
शब्-ओ-रोज़ किश्तों में मरने पर भी,
उनकी नज़रों में, रवादारी आज भी है।
रूह घायल होता है चंद रुपयों कि खातिर,
उसमें भी कितनों की, हिस्सेदारी आज भी है ।
मासूमियत को कुचल कर जलाने कि वहाँ,
दौलत वालों की, ज़िम्मेदारी आज भी है ।
आज़ाद मुल्क में क़ैद परिंदों कि तरह,
पल पल उन पर, पहरेदारी आज भी है ।
------- © Niraj Shrivastava
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