Wednesday 4 December 2013

उन बदनाम गलियों में, दुकानदारी आज भी है

उन बदनाम गलियों में, दुकानदारी आज भी है,
अरमानों को रौंदने की,  खरीदारी आज भी है ।

शब्-ओ-रोज़ किश्तों में  मरने पर भी,
उनकी नज़रों में, रवादारी आज भी है। 

रूह घायल होता है चंद रुपयों कि खातिर,
उसमें भी कितनों की, हिस्सेदारी आज भी है ।

मासूमियत को कुचल कर जलाने कि वहाँ,
दौलत वालों की, ज़िम्मेदारी आज भी है ।

आज़ाद मुल्क में क़ैद परिंदों कि तरह,
पल पल उन पर, पहरेदारी आज भी है ।

------- © Niraj Shrivastava

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