Wednesday 18 December 2013

कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना

कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

मोरे मन को बैरी कोयलिया समझ ना पाये,
क्यों बिरहा की अगन में ये कूक सुनाये, 
बादरिया भी आके मोहे कितना तड़पाये,
कौन सा जतन करूँ कुछ समझ ना आये ।

अब आ भी जा ओ पिया! सुन मेरा कहना, 
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

पगली बनाये मोहे, बरखा कि बूँदें,
देखूं अब छब तुम्हरी मैं , नैनों को मूंदें । 
तुम्हरे ही रंग में पिया! मैं तो रंगी हूँ,
अपने ही अंदर में ये मैं तो नहीं हूँ । 

पीर ये मन की बहुत, कठिन है सहना,
कैसे मैं काटूं पिया! बिरहा की रैना,
राह निहारत तोरी, बरसे मोरे नैना ।

----© Niraj Shrivastava

No comments:

Post a Comment