अजनबी शहर के ये रास्ते, जाने पहचाने से लगते हैं,
इन गलियों, इन चौराहों से रिश्ते पुराने से लगते हैं ।
उनके क़दम ज़रूर गुज़रे होंगे इन रास्तों से कभी,
तभी यहाँ के मौसम इतने सुहाने से लगते हैं ।
हर जुबां पर यहाँ उनका इख्तियार है इस क़दर,
जैसे हर एक लब्ज़ एक तराने से लगते हैं ।
बस एक दीद को तरस रही हैं क़ायनात सारी,
अब तो हर एक लम्हा एक ज़माने से लगते हैं।
ये हवाएं, ये फिजायें महक रहे हैं ऐसे,
जैसे बस अभी यहाँ, वो आने से लगते हैं ।
नजाने कितनों के क़त्ल का इल्ज़ाम है उन पर,
हर इल्ज़ाम बस उनके मुस्कुराने से लगते हैं ।
------Niraj Shrivastava
इन गलियों, इन चौराहों से रिश्ते पुराने से लगते हैं ।
उनके क़दम ज़रूर गुज़रे होंगे इन रास्तों से कभी,
तभी यहाँ के मौसम इतने सुहाने से लगते हैं ।
हर जुबां पर यहाँ उनका इख्तियार है इस क़दर,
जैसे हर एक लब्ज़ एक तराने से लगते हैं ।
बस एक दीद को तरस रही हैं क़ायनात सारी,
अब तो हर एक लम्हा एक ज़माने से लगते हैं।
ये हवाएं, ये फिजायें महक रहे हैं ऐसे,
जैसे बस अभी यहाँ, वो आने से लगते हैं ।
नजाने कितनों के क़त्ल का इल्ज़ाम है उन पर,
हर इल्ज़ाम बस उनके मुस्कुराने से लगते हैं ।
------Niraj Shrivastava
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