Saturday 28 September 2013

क़रीब आ के वो इतना, क्यों दूर हो गए

क़रीब  आ के वो इतना, क्यों दूर  हो गए,
ज़माने वालों की खातिर क्यों, मजबूर हो गए।

मेरे मौला ! बता दे मेरा क़सूर क्या था,
मेरे दिल के ज़ख्म इतने क्यों, नासूर हो गये। 

जो कभी दिल में यूँ रहते थे रहनुमा बनकर,
वो किसी और की आँखों के क्यूँ, नूर हो गये।

उनकी नज़रें तो अब मुझे पहचानती भी नहीं,
सोचता हूँ कि वो इतने क्यूँ,  मग़रूर हो गये। 

राह-ए-मुहब्बत के राही तो हम दोनों थे मगर,
मैं बना मुज़रिम तो वो क्यूँ, बेक़सूर हो गये। 
--- © Niraj Shrivastava

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