अंदाज़ तेरा, हुस्न तेरा और तेरी ये आरज़ू,
क्या बयां करती निगाहें, क्या मैं अब तुझसे कहूँ।
प्यार के नाज़ुक जज़्बात और ये दिल के हालात,
लबों पे आते नहीं, तू बोल अब मैं क्या करूँ।
सब समझते हो फिर भी, पास क्यों आते नहीं,
प्यास वस्ल की रह ही जाती, क्यों भला प्यासा रहूँ।
आये हो जब पास मेरे, रात रही है गुज़र,
सुबह के आने का दर्द है, क्यों भला मैं ये सहूँ।
ए खुदा! आवाज़ देकर रात को तू रोक ले,
क़ैद कर इस लम्हे को ज़हन-ओ-दिल के हवाले कर तो दूँ।
-------Niraj Shrivastava
No comments:
Post a Comment