Tuesday 7 May 2013

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी


जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।
याद आता है वो अल्हड़पन, वो कंचे,
जहां बिताया था बचपन हमने कभी।।

वो बस्ते भरे किताबों से,
वो पन्ने भरे हिसाबों से,
रहतीं थीं सदा जहां खुशियाँ,
खिलते थे सदा मुस्कानों से।
मासूम दोस्त जब साथ थे सभी,
सोचता हूँ कितने अमीर थे तभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

वो गलियाँ वो चबूतरे,
वो छत पर बैठे कबूतरें,
वो चाँद दिखा जब रातों में,
खो जाते हम माँ की बातों में।
जब कहानियां वो सुनाती थी,
लोरियां गाकर सुलाती थी,
काश मिल जाते वो लम्हे मुझे अभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

कितने कमाए पैसे हमने,
पर रिश्ते गंवाएं ऐसे हमने।
जैसे कुछ हाथ से छूट गया,
और कांच के जैसे टूट गया।
आज बिके हुए हैं सारे जज़्बात,
और व्यापारियों जैसे हैं हालात।
आज नहीं कुछ भी वो बात,
नहीं उन रिश्तों के सौगात।
कामयाबी क्या है, और क्या है मंजिल,
जिसे पाने में अकेला रह गया दिल।
आंसुओं में लिपटे हैं तस्वीर उन यादों के सभी।

जब भी गुज़रता हूँ इस रास्ते से कभी,
लगता है जैसे सब कुछ यहीं था अभी।

-----Niraj Shrivastava

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